समुच्चय , विकल्प एवं बाध -
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#समुच्चय🌼 =
ब्रह्मचर्य ➡ ️गृहस्थ ➡ वानप्रस्थ ➡ संन्यास
[ ब्रह्मचर्यं परिसमाप्य गृही भवेत् । गृही भूत्वा वनी
भवेत् । वनी भूत्वा प्रव्रजेत् । ]
#विकल्प🌼 =
ब्रह्मचर्य ➡ संन्यास
गृहस्थ ➡ संन्यास
वानप्रस्थ ➡ संन्यास
[ यदि वेतरथा ब्रह्मचर्यादेव प्रव्रजेद्गृहाद्वा वनाद्वा । ]
#बाध🌼 =
ब्रह्मचर्य ➡ आजीवन गृहस्थ ।
[ कुर्वन्नेवेह कर्माणि जिजीविषेच्छतँ समाः ।, यावज्जीवमग्निहोत्रं जुहूयात् । ]
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#ध्यान दें -
गृहस्थ का अर्थ विवाह करके पत्नी के साथ संसार के विषय सुख लूटते हुए दिन काटना नहीं वरन् ये एक सुनियोजित विशिष्ट तपस्या है ।
यदि आप गृहस्थ आश्रम में हैं तो आपको विवाह की अग्नि को प्रज्ज्वलित रखते हुए पत्नी के साथ मर्यादापूर्वक रहते हुए उसके सहयोग का लाभ उठाकर अग्नि की ही उपासना करते हुए करते हुए नित्य नियमपूर्वक पञ्च महायज्ञों को सम्पादित करना है । गर्भाधान संस्कार की मर्यादा में सन्तानोत्पादन कर उसे सुसंस्कृत कर पितृऋण चुकाना है , अन्यथा आप गृहस्थ नहीं कहलायेंगे । ☝️
पञ्च महायज्ञ -
१.देवयज्ञ।
२.ब्रह्मयज्ञ।
३.पितृयज्ञ।
४. वैश्वदेवयज्ञ ।
५.नृयज्ञ ।
।। जय श्री राम ।।
साभार:- श्री आद्य शंकराचार्य संदेश प्रवर्तन
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