शापत ताडत परुष कहन्ता । विप्र पूज्य अस गावहि सन्ता ।।
नचिकेता ने अपने पिता से पूछा - पिताजी आप जब ये दुर्बल गायें याज्ञिकों को दान कर ही रहे हो ,तो मुझे किसे दान करोगे ?
उनके पिता ने कहा - तूझे मृत्यु (काल) को दूंगा !
नचिकेता ने तो सही ही कहा था , फिर पिता ने क्यों कहा कि तुझे उठा के काल को दूंगा ?
विद्वान् का एक ही वक्तव्य अनेक अर्थों को स्वयं में समाहित किये होता है , किन्तु उसका गूढ़ रहस्यार्थ अश्रद्धधान और असंयतचित्त को विदित नहीं होता ।
विद्वान् कभी किसी का अहित नहीं करता , वह तो प्राणीमात्र का परममित्र होता है । पर अज्ञानी उसके वचनों का गूढ मर्म नहीं समझ पाते ।
सदृशं चेष्टते स्वस्याः प्रकृतेर्ज्ञानवानपि ।
ज्ञानी भी अपनी प्रकृति के अनुसार ही चेष्टा करता है , वह दुर्वासा भी दिखेगा , वशिष्ठ भी । पर दोनों भूमिकाओं में वह दोनों से कुछ अन्य ही होता है ।
दुर्वासा ऋषि सारे व्यंजन खाकर भी वस्तुतः दूर्वा ही खाते थे । यही ज्ञानी का स्वरूप होता है ।
क्षमा मॉगने वाला ब्राह्मण वस्तुतः कभी क्षम मॉग नहीं रहा होता है , अपितु वह क्षमा कर रहा होता है , क्योंकि दोषज्ञ होते ही वह स्वतः महान् हो चुका होता है ☝️
इसीलिये भर्तृहरि ने कहा /// दाक्षिण्यं स्वजने....क्षमा गुरुजने ///
क्षमा कीजिये- माने क्या होता है ?
किसे कहते हैं क्षमा?
जब हम किसी से कहते हैं कि - आप मुझे क्षमा कीजिये तो उसका अभिप्राय होता है कि आप मुझे सहन कीजिये ।
आप असह्य बने रहोगे तब तक अगला व्यक्ति कैसे आपको सहन करेगा ?
आपको सह्य बनना पडेगा , आप सह्य होओगे , तभी तो आपको सहन भी किया जा सकेगा न
इसलिये विद्वान् मौन हो जाता है , क्योंकि वह चाहता है कि यह मेरे लिये सह्य बनसके
पानी गर्म है , पानी कहता है पी मुझे , पीने वाला थोडी देर रुकता है , क्योंकि मुंह जलेगा , इसलिये वह प्रतीक्षा करता है कि ये पीने योग्य हो जाये ।
अब पानी बीच बीच में उबलता ही रहेगा , और बोलेगा पी नहीं रहा मुझे, तो कोई मूर्ख ही होगा जो पियेगा उसे ।
आप ठंडे शीतल बन जाओगे तो आपके बिना कहे ही आपको पी लिया जायेगा
नचिकेता के पिता ने कहा - तुझे मैं काल को दूंगा ,
नचिकेता ने प्रमाण नहीं दिखाया शास्त्र का कि पुत्र की हत्या का विचार करना भी पाप है
आज का कोई पुत्र होता तो कहता , तुम पिता हो या कसाई ? जो पुत्र को काल के पास भेज रहे हो !
पिताजी ने नाराज होकर मुझे काल के पास भेजा है तो इसमें भी मेरा परम कल्याण होगा , ये सोच थी नचिकेता की
और पूरी निष्ठा से वह काल के पास चले गये थे
ये सब ज्ञान कहॉ से आता है व्यक्ति को ?
श्रद्धा से ☝️
गुरुवचनविश्वासो नाम श्रद्धा । गुरुवचन पर विश्वास - इसी का नाम श्रद्धा है ।
आज्ञा गुरूणां ह्यविचारणीया , गुरुओं की आज्ञा अविचीरणीय होती है अर्थात् उसे पालन करने मेंसंशय नही करना चाहिए ।
ब्राह्मण की वाणी तलवार की धार होती है, हृदय मख्खन होता है और क्षत्रिय की वाणी मख्खन होती है और हृदय तलवार की धार ।
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