पूजिय बिप्र शील गुन हीना । शूद्र न गुन गन ज्ञान प्रबीना ।।
- श्रीरामचरित मानस ।
श्री राम चरित मानस में ईश्वर द्वारा भेद -
सब मम प्रिय सब मम उपजाये।
सब ते अधिक मनुज मोहिं भाये।।
तिन्ह महँ द्विज द्विज महँ श्रुति धारी । तिन्ह महँ निगम धर्म अनुसारी।।
अत्रि स्मृति मे
जन्मना ब्राह्मणो ज्ञेय संस्कारैर्द्विज उच्यते।
विद्यया याति विप्र त्वं श्रोत्रियस्त्रिभिरेव ॐ।। अध्याय 1/138
अतएव शास्त्रों ने कहा -
"त्वं हि ब्रह्मविदां श्रेष्ठः संस्कारान् कर्तुमर्हसि ।
बालयोरनयोर्नॄणां जन्मना ब्राह्मणो गुरुः॥"
- भागवतम्/स्कन्धः १०/अध्यायः ८
जन्म से ब्राह्मण गुरु है। अतएव, सद्गुरु तो ब्राह्मण को ही बनाना चाहिए।
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