हमारे वेदों - शास्त्रों में वर्णित डिण्डिम घोष के साथ समुद्रपारम्लेच्छदेश गमन का निषेध किया गया है । किसी भी शुद्ध कुलीन ब्राह्मण को कभी भी म्लेच्छ देशों की समुद्रपार यात्रा कर सनातन वैदिक धर्म की धज्जियॉ नहीं उड़ानी चाहिये , इसे पापकर्म बताया गया है किन्तु एक से बढ कर एक ये आधुनिक कथित धर्माचार्य समुद्रोल्लङ्घन कर म्लेच्छ देशों में डिण्डिम कर आये , और अब भी सनातनधर्मनाश का ये क्रम अनवरत चल रहा है ।
क्या ऐसे लोग #आचार्य कहाने लायक हैं ?
देखें प्रमाण --->
(क) वेदे म्लेच्छदेशगमननिषेधाे यथा-
न जनमियान् नान्तमियात् ।(माध्यन्दिनीयवाजसनेयिशुक्लयजुर्वेदशतपथब्राह्मणे १४।४।१।११,
काण्ववाजसनेयिशुक्लयजुर्वेदशतपथब्राह्मणे १६।३।३।१०, काण्वबृहदारण्यकाेपनिषदि १।३।१०)।
(ख) स्मृताै म्लेच्छदेशगमननिषेधाे यथा -
न गच्छेन् म्लेच्छविषयम् (विष्णुधर्मसूत्रे ८४।२),
म्लेच्छदेशे न च व्रजेत् (शङ्खस्मृताै १४।३०),
(ग) पुराणे म्लेच्छदेशगमननिषेधाे यथा -
सिन्धाेरुत्तरपर्यन्तं तथाेदीच्यतरं नरः।
पापदेशाश् च ये केचित् पापैरध्युषिता जनैः ।।
शिष्टैस् तु वर्जिता ये वै ब्राह्मणैर् वेदपारगैः।
गच्छतां रागसम्माेहात् तेषां पापं न नश्यति ।।
(ब्रह्माण्डपुराणे ३।१४।८१,८२, वायुपुराणे २।१६।७०,७१)
तस्मात् शुद्धकुलीन-आस्तिकैर्वेदवादिभिर्ब्राह्मणैः समुद्रपारम्लेच्छदेशगमनं नैव कार्यम् ।
।। जय श्री राम ।।
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