Friday, 22 September 2017

ज्ञानी व मूर्ख योग

विद्वान् के कथन को विद्वान् ही समझ सकता है मूर्ख नहीं |

वांझ क्या जाने प्रसव की पीडा क्या होती है |

लाखों मूर्ख भी मिलकर अपना व समाज का भला नहीं कर सकते | एक मात्र विद्वान् स्वकुल सहित सकल धरा को धन्य कर देता है | यथा - आदि गुरू शंकराचार्य जी |🙏

#ज्ञानी_मूर्ख_संकलनम्

1. मूर्ख + मूर्ख = व्यसन,निद्रा, कलह से समयनाश |

2. मूर्ख + ज्ञानी = विवाद (लडाई), कलहरुपी विष |

3. ज्ञानी + ज्ञानी = वाद, तत्त्वामृत |

      👉 यहां तीसरे क्रम का योग सबको उपकृत करता है | विद्वान् को इसी का संग करना चाहिए | इतर हेय है |

यह तो सुविदित ही है कि गणित में योगादि साजात्य में ही होता है | भिन्न जाति में पृथक् स्थिति होती है |

अत: अपना भला चाहते हो तो विद्वान् का संग करो! मूर्ख का नहीं |

👉 यह भी अनुभवसिद्ध विषय है कि चाहे कितना भी जोर लगा दो मूर्ख मूर्ख को ढूंढता है और ज्ञानी ज्ञानी को | क्योंकि #समान_व्यसनेषु_सख्यम् होता है |

किसी ने क्या सुन्दर कहा है -

#ज्ञानी_से_ज्ञानी_भिडे_ज्ञान_सवाया_होऐ |
#अज्ञानी_से_ज्ञानी_भिडे_तुरत_लडाई_होऐ ||

#निष्कर्ष यह है कि शास्त्र मार्ग पर चलने वाले विद्वान् से संसार का भला होना है न कि निपट मूर्ख से |

नोट :- यह किसी व्यक्ति विशेष के लिए नहीं है |
जय श्री राम

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