Sunday, 3 September 2017

शास्त्रीय विधानों का व्यावहारिक महत्व -

ये बड़ा भारी भ्रम  हिन्दुओं  में है कि वैदिक मांसभक्षणविधान  की बात पर समाज मांसाहारी हो जायेगा , और व्यर्थ में पशुहिंसा करेगा जबकि यथार्थता ये है कि वैदिक विधान के अवतरण से समाज में से हिंसा  अभक्ष्य भक्षण जैसी कुरीतियों पर अंकुश  लग जायेगा !

तुम लोगों ने शास्त्रीय विधानों को धूलि धूसरित करके क्या ध्वज गाड़ लिया ?  क्या हिन्दू का मांसाहार पशुहिंसा बन्द हो गयी ?  गलत रीति से भला कभी सही लक्ष्य मिलता है ?  पहले जो मन्दिर में महीने की  निश्चित तिथियों  में आकर  बलि विधान का पालन करते थे , अब    होटलों में आये दिन खचाखच काट  कर खा रहे हैं !  सुधार तो हुआ नहीं , पतन और हो गया !  ये वैजिटेरियन और नॉनवेजिटेरियन - विदेशियों के लाये भ्रामक शब्द हैं !   हमारी भारतीय परम्परा भक्ष्यान्न अभक्ष्यान्न की है  , शाकाहार या मांसाहार की नहीं !!

लोहे को लोहा ही काटता है !   लोक में जो लोग पशुहिंसा या अभक्ष्य भक्षण करते हैं वे शास्त्र देखकर ये सब  नहीं करते , अपितु प्रवृत्ति निमित्तक उनका ये कार्य है ! शास्त्र तो शासन / अनुशासन का नाम  है , वह शिष्ट और अनुशिष्ट दोनों बनाता है !

प्रवृत्तिरेषु भूतानाम् - ऋषि - मुनियों ने ऐसे ही सूत्र नहीं कहा था !  सर्वहिताय सर्वसुखाय शास्त्रीय विधान हैं  ! विषबाधाहरण करने जैसी प्रत्यक्ष सामर्थ्य रखने वाले अलौकिक वेद मन्त्रों के दिव्य प्रताप से न  किसी पशु को क्लेश होता न यजमान का पतन होता वरन्  दोनों का उत्थान होता !  ( अचिन्त्यो हि मणिमन्त्रौषधयः प्रभावः) भोगी  को भी योगी बनाने की विद्या  कर्मकाण्ड  है ! पतित पामर का उत्थान कर  उसे  देवत्व प्रदान करने की विद्या का नाम कर्मकाण्ड है |  विधि-निषेधमय  कलिमल हरनी | करमकथा रबिनन्दनि बरनी ||

जो  निवृत्तिमार्गी थे वे ऋषि - मुनि तो प्राचीन काल में भी तीन वर्ष पुराना जौं विधिपूर्वक खा कर जीवन निर्वाह करते थे , वायु , जल,  और  सूर्य रश्मियों  पर उनका जीवन था ! कहीं किसी प्रकार की हिंसा न हो , इस हेतु खेचरी जैसी अनेक विद्याऐं वे  जीवन में धारण करते ,    जो आज भी  निवृत्तिमार्ग पर चले , तो किसने रोका है ? शास्त्र तो घोषणा करके कहता ही है कि निवृत्तिमार्ग  महान् फल वाला मार्ग है ,  #निवृत्तिस्तु_महाफला || ( मनु०५|५६) पर निवृत्ति का  नाम  जप कर  दबे पॉव प्रवृत्तिमार्ग पर चल रहे  छद्म  धार्मिकों का मुखौटा उतारना तो आवश्यक ही है ! ये छद्म धर्माचार्य लोग अपने  आप तो  स्वयं डूबे ही, चार को और ले डूबे ! 
अज्ञानप्रभाव से  विश्वव्याप्त सनातन हिन्दू धर्म जीर्णशीर्ण हो गया !

||  जय श्री राम ||

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