अन्तःकरण में दो प्रकार की मलिनताएँ होती हैं ।
कर्मज - प्राचीन पुण्यपापों का फलरूप ।
गुणज - काम क्रोध लोभादि वृत्तिरूप इच्छाओं का फल ।
शास्त्रीय कर्मानुष्ठान रूप धर्म से पाप धुलकर कर्मज मलिनता निवृत होती है ।
फलाभिसन्धि के परित्याग से कामनाप्रतिरोध के द्वारा गुणज मालिन्य भी दूर होता है ।
इसीलिए निष्काम धर्मानुष्ठान को शास्त्रों में प्रतिपादित किया है ।
भाष्यकार शङ्कर
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