Sunday, 3 September 2017

धर्म

अन्तःकरण में दो प्रकार की मलिनताएँ होती हैं ।

कर्मज - प्राचीन पुण्यपापों का फलरूप ।

गुणज - काम क्रोध लोभादि वृत्तिरूप इच्छाओं का फल ।

शास्त्रीय कर्मानुष्ठान रूप धर्म से पाप धुलकर कर्मज मलिनता निवृत होती है ।

फलाभिसन्धि के परित्याग से कामनाप्रतिरोध के द्वारा गुणज मालिन्य भी दूर होता है ।

इसीलिए निष्काम धर्मानुष्ठान को शास्त्रों में प्रतिपादित किया है ।

                                                भाष्यकार शङ्कर

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