#जनश्रुति_समीक्षा
देव श्री खुडीज़ह्ळ के विषय में 1892 की जनश्रुति का लेखक कोई अंग्रेज था (देखें निम्न चित्र)| कहा जा रहा है कि इस लेखक ने भी देहुरी गांव वासी से ये जानकारी प्राप्त की | भवतु | जनश्रुति कोई भी हो पर उसकी सत्यता कितनी है यह परिशीलनीय है |
#समीक्षा -
आपके (#यतिन_पंडित) द्वारा प्रस्तुत 1892 की जनश्रुति में व तदुक्त स्थान आदि में ही विसंगतियां है |
यथा - चित्र में आदि में लिखा है कि मन्दिर खुडीजल देहुरी, पर जनश्रुति में बात करता है खुडीगांव की | लगता है लेखक को स्वयं ही पता नहीं है कि यह देहुरी मन्दिर की बात है या खुडीगांव कि ? और ये भी बता दें कि खुडी नाम का कोई भी गांव नहीं है | हां खुडीगाड स्थान अवश्य है |
जिन स्थानों का वर्णन इस जनश्रुति में किया है वहां इस देव के तीन (खुडीगाड + देहुरी) मन्दिर है | तो प्रश्न ये उठता है कि किस मन्दिर की बात लेखक कर रहा है ?
हमें तो यही लग रहा है कि इस लेखक को स्वयं कुछ भी ज्ञात नहीं है जो सुना सो लिखा | अत: इसे प्रमाणिक नहीं मान सकते |
अपि च जिस दो फीट की पिण्डी की बात की जा रही है उस पर भी बता दें कि तीनों मन्दिर में इस प्रमाण की कोई पिण्डी सम्प्रति विराजमान नहीं है |
इस देव का जमदग्नि से भी दूर दूर तक कोई सम्बन्ध ज्ञात नहीं होता | होता तो अवश्य हमारे व्यवहार में भी होता | या इस देव की गणाई आदि में गाया जाता |
अत: इस जनश्रुति के कुछ तथ्यों का मेल कथित स्थान पर न होने से इस जनश्रुति को लेकर खुडीज़ह्ळ जी को जमदग्नि कहना आपका अज्ञान मात्र है |
हमारे पास अन्य परम्परा व जनश्रुति भी है जिससे हम निर्भ्रम है और इस देव को भी जानते है कि यह कौन है| व्यर्थ में लोगों को भ्रम में न डालें ! नहीं तो हमें विवश होकर आपके मत का खण्डन करना पडेगा |
👉 जिस देव व क्षेत्र की बात हो रही है उसकी न परम्परा का आपको पता न ही मन्दिर का और चले हो एक विसंगति युक्त जनश्रुति से देव खुडीज़ह्ळ को जमदग्नि सिद्ध करने |
इसकी परम्परा व वैभव को हमसे जानों ! जबसे यहां मन्दिर प्रतिष्ठित है तभी से इसकी सेवा हमारे पूर्वज अविच्छिन्नतया करतें आए हैं |
शिवं भूयात्
हर हर महादेव
जय श्री राम
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