प्रश्न - वेद-शास्त्रों के धर्म विषयक गोपनीय तत्त्वों को किससे श्रवण करना चाहिये ?
उत्तर - इस प्रसंग में श्रीमहाभारत के उद्योगपर्व के सनत्सुजातपर्व के इकतालीसवें अध्याय में श्री सनत्सुजात की प्रार्थनाविषयक प्रकरण में श्री विदुर जी बहुत सुन्दर तथ्य कहते हैं , धर्म के जिज्ञासुओं को इस पर ध्यान देना चाहिये ।
धृतराष्ट्र ने पूछा कि हे विदुर ! क्या तुम उस तत्त्व को नहीं जानते, जिसे अब पुन: सनातन ॠषि मुझे बतावेंगे? यदि तुम्हारी बुद्धि कुछ भी काम देती हो तो तुम्हीं मुझे उपदेश करो।
तो तब श्री विदुर बोले- राजन्! मेरा जन्म शूद्रा स्त्री के गर्भ से हुआ है, अत: (मेरा अधिकार न होने से) इसके अतिरिक्त और कोई उपदेश देने का मैं साहस नहीं कर सकता, किन्तु कुमार सनत्सुजात की बुद्धि सनातन है, मैं उसे जानता हूं। #ब्राह्मणयोनि में जिसका जन्म हुआ है, वह यदि गोपनीय तत्त्व का प्रतिपादन कर दे तो देवताओं की निन्दा का पात्र नहीं बनता। इसी कारण मैं आपको ऐसा कह रहा हूं ।
श्री वैशम्पायनजी कहते हैं- हे राजन् ! तदनन्तर विदुरजी ने उत्तम व्रतवाले उन सनातन ॠषि का स्मरण किया। उन्होंने भी यह जानकर कि विदुर मेरा स्मरण कर रहे हैं, प्रत्यक्ष दर्शन दिया ।
फलतः केवल उच्च कुलीन विशुद्ध ब्राह्मण ही धर्म के गूढ़ रहस्यों के प्रतिपादन का अधिकारी होता है । वह जब धर्म का मर्म प्रतिपादन करता है , तब समस्त देवता प्रसन्न होते हैं । अधिकारी से सुना गया धर्मज्ञान ही श्रोता को उसकी सफलता के सर्वोच्च शिखर पर प्रतिष्ठित कराता है ।
#आचार्याद्धैव_विद्या_विदिता_साधिष्ठं_प्रापतीति ।।
(छान्दोग्योपनिषद ४|९|३ )
।। जय श्री राम ।।
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