"वैदिक" शब्द का तात्पर्य है, जो वेदों से व्युत्पन्न या वेदों के समरूप हो अथवा जो वेद के द्वारा कहा गया हो (वेदेषु विहितः, वेद + ठक्) और "धर्म" शब्द का तात्पर्य है जो धारण करने योग्य हो! इस प्रकार "वैदिक-धर्म" का सरल भाषा में यदि अभिप्राय कहें तो वेदों के द्वारा कहा गया या वेदों के समरूप अथवा वेदों से व्युत्पन्न जो धारण करने योग्य है, वही "वैदिकधर्म" शब्द का शाब्दिक अभिप्राय है।
परम करूणामय जगद्गुरु भगवान् श्रीमद् आद्य शंकराचार्य जी ने श्रीमद्भगवद्गीता भाष्यभूमिका के माध्यम से यह बताया है कि "नारायण" नाम से कहे जाने वाले भगवान् विष्णु इस भौतिक प्रकृति से परे है, उन्ही श्री भगवान् ने इस अखिल चराचर की रचना करने के उपरान्त इसके सम्यक् परिपालन की ईच्छा से मरीच्यादि ऋषियों तथा सनक-सनन्दनादि को उत्पन्न कर उनकों "वैदिकधर्म" का ग्रहण कराया।
वैदिकधर्म दो प्रकार का है -
१. प्रवृत्तिपरक वैदिकधर्म ।
२. निवृत्तिपरक वैदिकधर्म।
उन श्रीमन्नारायण नामक भगवान् विष्णु ने ही पहले मरीच्यादि ऋषियों को उत्पन्न कर उनको वेदोक्त प्रवृत्ति-परक वैदिक-धर्म ग्रहण कराया, अनन्तर सनक-सनन्दनादि को उत्पन्न कर उनको निवृत्ति-परक वैदिक-धर्म ग्रहण कराया। जैसा कि आदि जगद्गुरु कहते हैः- "स भगवान् सृष्ट्वेदं जगत तस्य च स्थितिं ........... द्विविधो हि वेदोक्तो धर्मः" इति। प्रवृत्ति सृष्टि के प्रादुर्भाव काल से लेकर अद्यावधि-पर्यन्त इन्हीं आद्य ऋषि-मुनियों की गोत्र -परम्परा अथवा सम्प्रदाय-परम्परा के रूप में अविरल गंगा-जलप्रवाह की भान्ति प्रवाहित हो रही वैदिक-धर्म परम्परा का यथोचित अथवा समुचित निर्वहन करने वाला अखिल मानव-समुदाय लोक में "हिन्दू" नाम से विख्यात है।
धर्म की जय हो!
अधर्म का नाश हो !
प्राणियों में सद्भावना हो!
विश्व का कल्याण हो !
गो हत्या बन्द हो!
गो माता की जय हो !
हर नमः पार्वती पतये हर हर महादेव ।
॥जय श्री राम॥
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