#प्रेतकृत्ये_प्रतिकूलता_निर्णय-
{यहाँ इस विषय में आशौच मांगलिक कार्यों को न करने में तथा वर्ष(सांवत्सरिकश्राद्धादि)कृत्य समय से पहिले न करने में हैं}=-->
पिता के मरणोपरान्त १वर्ष(३६० दिन), माता की मृत्यु में ६ मास(१८० दिन), स्त्री(पत्नी)की मृत्यु में ३मास(९०दिन), भाई और पुत्र की मृत्यु में देढ़मास(४५दिन) तथा दूसरे सपींड मनुष्यों का आशौच १ मास तक रहता हैं | कहे हुए आशौचावधि के पश्चात् शांति(विनायक शांति)को करके विवाहादि मांगलिक कार्य कर सकतें हैं ----> *(पितुरब्दमशौचं स्यात्तदर्धं मातुरेव च / मासत्रयं तु भार्यायास्तदर्धं भ्रातृपुत्रयोः// अन्येषां तु सपिण्डानाशौचं मासमीरितम् /तदन्ते शान्तिकं(वैनायकीं)कृत्वा ततो लग्नं(माङ्गलिककर्म)विधियते || स्मृति०रत्ना०||)*
ऐसे प्रतिकूल अवसरों के होनेपर भी एक महीने उपरान्त विनायकशान्ति करकें गोदान के बाद वाग्दान विवाहादि कार्य सम्पन्न करें ---> *(प्रतिकूलेपि कर्तव्यो विवाहो मासतः परः / शान्तिं(वैनायकीं)विधाय गां दत्वा वाग्दानादि चरेत् पुनः // ज्यो०प्रका०//)*
पिता की मृत्यु हो तो तीन ऋतुतक(६ मास) मंगलकार्य न करें,यदि बहुत से उपद्रव उठैं तो प्रतिकूल में भी (विनायक शान्ति) करकें मंगलकार्य को करें और सपिंड के प्रतिकूल में १ मास का त्याग करे बाद में (विनायक शांति) करके मंगल कार्य करें----> *(प्रतिकूलेपि न कर्तव्यो गच्छेद्यावदृतुत्रयम् / प्रतिकूलेपि कर्तव्यमित्याहुर्बहुविप्लवे //प्रतिकूले सपिण्डस्य मासमेकं विवर्जयेत् //मेधातिथिः//)*
दुर्भिक्ष, राष्ट्रभंग, माता-पिता के प्राणसंकट में प्रौढा़ कन्या के विवाह में अनुकुलता प्राप्त नहीं होती ----> *(दुर्भिक्षे राष्ट्रभंगे च पित्रोर्वा प्राणसंशये / प्रौढायामपि कन्यायां नानुकूल्यं प्रतीक्ष्यते //ज्यो०सा०//)*
तीन पुरुष पर्यन्त सगोत्रियों को प्रतिकूल होता हैं, इसी प्रकार प्रवेश,निष्क्रमण तथा चूडाकरण,यज्ञ आदि माङ्गलिक कार्यों में प्रतिकूलता रहती हैं | चतुर्थ मनुष्य पर्यन्त के प्रतिकूल में प्रेतकर्म(वर्षान्तक्रियायों -- प्रतिमासिक व सांवत्सरिकश्राद्ध)के किये बिना अभ्युदय कर्मों को नहीं करना चाहिये अतः पाँचवे पुरुष का प्रतिकूल नहीं रहता ----->
*(पुरुषत्रय पर्यन्तं प्रतिकूलं स्वगोत्रिणाम् / प्रवेशन्निर्गमस्तद्वत्तथा मण्डनमुण्डने// प्रेतकर्माण्यनिर्वर्त्य चरेन्नाभ्युदयक्रियाम् / आचतुर्थं ततः पुंसि पञ्चमे शुभदं भवेत् //मेधातिथिः//)*
कोई संकट(प्रतिकूल,प्राणसंशयादि) प्राप्त हो तो याज्ञवल्क्य ने कहा हैं कि विनायकशांति करने के बाद मांगलिक कार्यों को करें---> *( संकटे समनुप्राप्ते याज्ञवल्क्येन योगिना/ शान्तिरुक्ता गणेशस्य कृत्वा तां शुभमाचरेत् //मेधातिथिः//)* अतः वर्षान्तक्रियादि को {बारहवें मासके पूर्ण होनेपर त्रयोदशवे मासके प्रथम दिन अतः मृत्युतिथिपर (आब्दिक/सांवत्सरिक वा क्षयाहश्राद्ध)आदि तो उक्त समय में ही करना चाहिये... प्रतिकूलता रहे तो उक्त अवधि में विनायकशांति करकें ही मांगलिक कार्यों को करना चाहिये पर वार्षिकक्रियाओं को समय से पहिले पूर्ण नहीं की जा सकती |
#अनिष्टानि--(वाग्दान) निश्चय करनेपर यदि (सपिंडों में से)किसीकी मृत्यु हो जाय तो विवाह न करैं, करने से कन्या #विधवा होती हैं -- *(कृते तु निश्चये पश्चान्मृत्युर्भवति कस्यचित् / तदा न मङ्गलं कुर्यात् कृते वैधव्यमाप्नुयात्)*
वधू और वर के विवाह का निश्चय करने के बाद वधू अथवा वर के घर किसी मनुष्य की मृत्यु हो जाय तो उस समय में विवाह न करें---- *( वधूवरार्थं घटिते सुनिश्चिते वरस्य गेहेप्यथ कन्यकायाः/ मृत्युर्यदि स्यान्मनुजस्य कस्यचित्तदा न कार्यं खलु मङ्गलं बुधैः//मेधातिथिः//)* क्योंकि----> (सगाई)के निश्चय के बाद किसी सगोत्री मनुष्य की मृत्यु हो जाय तो विवाह करने से वह स्त्री वैधव्य को प्राप्त होती हैं --- *( कृते वाङ्गनिश्चये पश्चान्मृत्युर्मर्त्यस्य गोत्रिणः/ तदा न मंगलं कार्यं नारीवैधव्यदं ध्रुवम् //स्मृति चन्द्रिका//)*
वाग्दान के उपरान्त कन्या वा वर के कुल में मृत्यु हो जाय तो उस समय मंगल को न करें, कारण कि वह कुल का नाशक होता हैं --> *(वाग्दानानन्तरं यत्र कुलयोः कस्यचिन्मृतिः/ तदोद्वाहो नैव कार्यः स्ववंशक्षयदो यतः //भृगुः//)*
वर-वधू,माता पिता,पितामह-पितामही आदि,मामा,चाचा, सगा भाई,चाची, चाचा का पुत्र,स्त्री(पत्नी),अविवाहिता बहन तथा विवाहित बहन आदि के मृत्यु पर विवाह में प्रतिकूलता (विघ्नप्रद)रहती हैं --> *(वरवध्वोः पिता माता पितृव्यश्च सहोदरः/ एतेषां प्रतिकूलं च महाविघ्नप्रदं भवेत् / पिता पितामहश्चैव माता चैव पितामही // पितृव्यस्त्रीसुतो भ्राता भगिनी चाविवाहिता/एभिरत्र विपन्नैश्च प्रतिकूलं बुधैः स्मृतम् //अन्यैरपि विपन्नैस्तु केचिदूचुर्न तद्भवेत् //शौनकः//)*
वाग्दान के बाद माता वा भाई की मृत्यु हो जाय तो अपने वंश के हित की इच्छावाला विवाह न करे,एकवर्ष के बाद करें ----> *(वाग्दानानन्तरं यत्र कुलयोः कस्यचिन्मृतिः/ तदा संवत्सरादूर्ध्वं विवाहः शुभदो भवेत् //मेधातिथिः//)*
अतः प्रतिकूलतानुसार विवाह को उपर कही अवधीयों तक त्याग करना चाहिये... संकट में कही हुई अवधि के बाद विनायकशांति करकें मांगलिक कार्य को करें परंतु वार्षिकक्रियाएँ तो उचित समय में ही होनी चाहिये...
ॐस्वस्ति || पु ह शास्त्री उमरेठ ||
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