संस्कृत भाषा का उद्धार कैसे हो ?
संस्कृत भाषा के पाठ्यक्रम से ये मेघदूत, अभिज्ञानशाकुन्तलम् , रघुवंशम् , नैषधीयचरितम्, रत्नावली , कादम्बरी आदि व्यर्थ का साहित्य पढ़ाने के स्थान पर भौतिक विज्ञान , रसायन विज्ञान एवं जीव विज्ञान, इतिहास , भूगोल जैसे अत्याधुनिक विषय पढ़ाये जाने चाहिये ।
शाकुन्तलम् आदि में निहित चारित्रिक व पारम्परिक शिक्षा व रस , छन्द, अलंकार के सामान्य शिक्षणार्थ साररूप से एक पुस्तिका हो, वो पर्याप्त है ।
तभी संस्कृत का उद्धार सम्भव है ।
संगोष्ठियों के नाम पर केवल संस्कृत भाषा की महिमा गाकर, चाय पकौड़े, छप्पन भोग खाकर अपने घर वापस जाने से या फिर संस्कृत भारती जैसा दिशाहीन संगठन बनाकर शिविरों के नाम पर चार लोगों को सः बालकः , एषः कः आदि रटाकर कोई लाभ नहीं ।
कथित विश्वविद्यालयों के स्थान पर पारम्परिक मठों में ही उक्त विधि से द्विजों के लिये संस्कृत का पठन- पाठन होना चाहिये , तभी उस संस्कृति का भी उद्धार होगा , जिस पर यह संस्कृत सनातन रूप से समाश्रित है ।
।। जय श्री राम ।।
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