जो उपनीत-द्विज नित्य #सन्ध्योपासना न करता हो वें सब अयाज्य अर्थात् वैदिक कर्मकांड करने करवाने के *(सन्ध्योपासनालोप प्रायश्चित किए बिना तथा पुनः नित्यसन्ध्योपासना से च्युत नहीं होंगे इस प्रकार निवृत्तिरूप निश्चय करने तक) अधिकारी नहीं - तो फिर क्यों सभी को वैदिक कर्मकांड वैदिकों करवा रहे हैं ? आजकल कुछ कर्मकांडी-पंडितों भी सन्ध्योपासना नहीं करतें । इन्हें अमंत्रक(बिना वेदमंत्र के पुराणोक्त कर्मकांड करवायें, जब तक उचितरूप से प्रायश्चित्त करकें अधिकारी द्विज न हो।) सातदिन सन्ध्योपासना न करनेवाले द्विज को प्रायश्चित्त पूर्वक पुनरुपनयन कहा हैं क्योंकि वह द्विजकर्मों से अपना अधिकार खो चूका -- सभी द्विजों में वेदाध्ययन, सवैदिकमंत्रयज्ञ और सवैदिकमंत्रदान समानकर्म हैं तद्वद वेदाध्यापन, यज्ञ और परिग्रह तथा उपर के सभी समान तीन कर्म ब्राह्मणों के कुल छह कर्म हैं उस सब में से शास्त्रकारों ने शूद्रवद् बहिष्कृत कहा हैं --- क्योंकि इनकी गिनति मनु,हेमाद्री,देवल आदि ने भी अयाज्यों में ही कही हैं और द्विजत्व से इन्हीं कारणों के अनुसार पतित अथवा जातिमात्र ही हैं द्विजत्व समाप्त हो चूका हैं -- ( इस प्रकार पुनः यज्ञोपवीत के निमित्त कारणों को आचरने वाला भी ) द्विजत्व से हीन हैं।
(१)--- *(#न_तिष्ठति_तु_यः_पूर्वां_नोपास्ते_यश्च_पश्चिमाम्। #स_शूद्रवद्बहिष्कार्यः_सर्वस्माद्द्विजकर्मणः। २/१०३ मनुः।। तत्रैव कुल्लुकभाष्य - "" स शूद्र इव सर्वस्माद् द्विजातिकर्मणोऽतिथि सत्कारादेपि बाह्यः कार्यः।।)"*
(२) #चतुर्वर्ग_चिंतामणौ - पृष्ठ ७९८ कर्मच्युतव्रात्यः "( व्रात्यो गायत्री नाशकः।। देवलः।। तत्र हेमाद्रीः - "" सन्ध्यादि नित्यकर्माणि त्यक्त्वा सर्वदा वर्त्तयन् -इत्यर्थः।।)"
यदि वैदिक कर्मकांड करवाना चाहतें हो तो पहिले आप-ब्राह्मण और बाद में द्विज यजमान द्विजत्व से पतित हैं कि नहीं यह ध्यान रखें, पुनरुपनयन निमित्त दोषों तथा समस्त प्रकार के अयाज्यों का याजन करनेवाला भी द्विजत्व से पतित हैं- इनको इनके दोषानुसार उचित प्रायश्चित्त के बाद पुनः द्विजत्व से पतित नहीं होगे एतदर्थरूप पश्चाताप करने वाले को पहिले उक्त विधा से शुद्धि कर पुनःउपनयन हो जाने के बाद यही पतित शुद्ध द्विज हो सकतें हैं अन्यथा ये अयाज्य ही रहेगे --इनके वैदिक कर्मकांड नहीं हो सकतें , पुराणोक्त कर्मकांड कर सकते हैं।
शास्त्रकी मर्यादा में अधिकार अनधिकार होता हैं किसी देयउपाधि के कारण अधिकार सिद्ध नहीं ।
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