आपका आक्षेप , हमारा उत्तर -
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#आक्षेप - स्मार्त एवं वैष्णवों के दार्शनिकसिद्धान्त अलग ,आगम अलग ,आचार अलग ,आत्मपरमात्मविषयक बन्धमुक्तिविषयक आत्मकल्याणोपायविषयक मान्यता नितान्त विरुद्ध ,फिर स्मार्त-वैष्णव क्या होता है ,केवल स्मार्त कहिये इसे,,
#उत्तर - श्रुतिस्मृती ममैवाज्ञे यस्त उल्लङ्घ्य वर्तते। आज्ञोच्छेदी मम द्वेषी मद्भक्तोऽपि न वैष्णवः।। श्रुतियॉ और स्मृतियॉ भगवान् की आज्ञाऐं हैं, उनका उल्लंघन करने वाला भला कैसा भक्त ? कैसा वैष्णव ? और जो उनकी आज्ञाओं पर चले , वो कैसा अभक्त ? कैसा अवैष्णव ?
स्मार्त्त और वैष्णव की पारस्परिक वैदिक पार्थक्यता का ये दुष्प्रचार आपका स्वयं का फैलाया हुआ है । शास्त्रवचनों को काट छॉट कर , अर्द्धकुक्कुटीन्याय से स्वार्थ में तात्पर्य निकालकर अलगाववादी बनकर बैठ जाना एक बात है , और समस्त शास्त्रवचनों का न्यायपूर्वक सारभूत समाधान लाभ करना दूसरी ।
आत्मा वै जायते पुत्रः - इस श्रुति के बल से अपने पुत्र के जड़ शरीर को ही आत्मा समझ कर चार्वाक् परम्परानुयायी होकर बैठ जाना एक बात है, और गतिसामान्यात् जैसे न्यायपूर्ण उपदेशों को स्वीकार करके समस्त श्रुतियों के सारभूत निर्णयस्वरूप चेतन आत्मतत्त्व को ही आत्मा समझना दूसरी ।
समस्त वैदिक स्मृतियों का सर्वतन्त्र सिद्धान्त एक ही है , न कि दो, तीन या चार । ये बात जितनी सरल और स्पष्ट है, बोध होने के लिये उतनी ही भगवत्कृपासाध्य भी ।
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#आक्षेप - कुछ स्मार्तों ने श्रीतुलसीदासजी महाराज को भी स्मार्तवैष्णव कह कर ऐसे ही भ्रम फैलाया था ,श्रीशङ्कराचार्यजी क्या ऊर्ध्वपूण्ड्र लगाते हैं क्या वे तत्त्वत्रय को पारमार्थिक मानते हैं क्या वे भक्ति को साक्षात् मुक्ति में ,अद्वैतसम्मत ज्ञानव्यापार के विना कारण मानते हैं ? ऐसे तो कीट से ब्रह्मा तक विष्णुव्याप्त होने से वैष्णव ही है स्मार्त ही क्यों ?तथापि आगमसिद्धलक्षणानुरूप वैष्णवता स्मार्तों की है या नहीं यह विचारणीय है,
#उत्तर - शास्त्र के सम्बन्ध में जो वस्तु न्यायविपरीत होगी , उसे कोई भी भगवत्कृपाप्राप्त विद्वान् क्यों स्वीकारेगा ? शास्त्रों के नाम पर अपने आग्रहपूर्ण मनमाने सिद्धान्तों की मोहर लाकर तुम होते कौन हो किसी को वैष्णवता का प्रमाणपत्र बॉटने वाले ? भला हो कि त्रिपुण्ड्र लगाकर शिवोपासना करने वाले श्री राम, श्री कृष्ण , पञ्च पाण्डव आदि तुमसे बच गये, अन्यथा उनको भी तुम अवैष्णवता का प्रमाण पत्र थमा देते ।
बड़ी ही हास्यास्पद् बात है कि श्री आद्य शंकराचार्य यदि उर्ध्वपुण्ड्र नहीं लगाते तो वे शास्त्रसम्मत वैष्णवाचार्य नहीं , आप किस मुंह से वैष्णवानां यथा शम्भुः कहकर सबसे अग्रगण्य वैष्णवाचार्य स्वीकारने का ढोंग करते हैं फिर समाज में ? बोल दो न स्पष्ट कि हम तो त्रिपुण्ड्रधारी महादेव शिव को केवल इसलिये वैष्णवाचार्य बोलते हैं ताकि वो हमारे गले की हड्डी न बनें, ताकि समाज में हमारे घोर दुराग्रही होने की पोलपट्टी न खुले !
#आक्षेप - भेद एवम् अभेद का दिवस रात्रि वत् चिरकाल से असमाधेय विवाद है ,अतः दोनों पूर्ण अनादि वैदिक परम्परा है अपने अपने सिद्धान्तों के अनुसार आचारनिष्ठ रहते हुए साधन करें ,अनावश्यक विधापदार्थ को विघटित न करें तो ज्यादा अच्छा है,अन्यथा यह प्रतीत होगा कि अपने सिद्धान्त में वैष्णवों को समाहित करके उनके पृथक् अस्तित्व अनितरसाधारण दार्शनिक चिन्तन आदि को नगण्य सिद्ध कर रहे हैं ,आखिर सनातनधर्म की दूसरी शाखा के स्वरूप को क्यों नहीं पचा पा रहे हैं जिस वैदिकता के आधार पर उनका प्रामाण्य है वही तो वैष्णवों का भी आधार है ,अन्यतर के ज्यादा प्रामाण्य में क्या विनिगमना है///
उत्तर - दो प्रतिरोधी पक्षों में परस्पर विवाद हो और न्यायाधीश महोदय स्वयं भॉग पीकर बैठे हों तो निर्णय यही आयेगा कि दोनों पक्ष नशे में झूम रहे हैं , इसलिये दोनो सही हैं ।
वाह भाई क्या विवेक है तुम्हारा ! स्वयं भेद और अभेद दिवस और रात्रिवत् बताकर असमाधेय कहते हो और स्वयं दोनों को वैदिक परम्परा कहते हो? मतलब अन्धकार और प्रकाश दोनों ही तुमको शास्त्र में दिख रहा है ! इसी को कहते हैं दृष्टिदोष । ज्योतिःस्वरूप वेदज्ञानराशि में अन्धकार का कहॉ स्थान ? त्रिभुवनभास्कर रश्मिरथी सूर्यमण्डल में अन्धकार कहॉ ? वन्ध्यापुत्रो व्योमवनं नैवास्ति न भविष्यति । कीदृशी दृश्यता तस्य कीदृशी तस्य नास्तिता ।। भला क्या कभी बॉझ का लड़का आकाश के वन में पैदा हो सकता है ? वन्ध्यापुत्रो न तत्त्वेन मायया वाsपि जायते । अभेद में भेद तुम्हारी मिथ्या कल्पना से ही हो सकता है ! वन्ध्या का पुत्र तो तुम्हारी भ्रान्ति में ही पैदा हो सकता है , वस्तुतः नहीं ।
।। जय श्री राम ।।
कुछ जिज्ञासा वश आपसे बात करनी है जो की कुछ श्रुति सम्बंध मे है तो आप कृपया हमारा फ़ेस बुक के माध्यम से प्रथम संपरक करे तो बडा उपादेय होगा ।हाला की यहा पर कहे जाने वाले विषय से हमे कोई लेना देना नही है पर शास्त्र चर्चा से तात्पर्य है ।Anuragraiji deekshit इस नाम से मेरा अन्वेषण कर ने की कृपा करे
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