अधिकारीभेद से उपदेशभेद होता है ।
जैसा कि गोस्वामी तुलसीदास ने भी कहा है-
मूरख हृदय न चेत, जो गुरु मिलहिं विरंचि सम।।
फूलहिं फलहिं न बेंत, जदपि सुधा बरसहिं जलद।।
जलधर मेघ समस्त धरा पर समान रूप से जलवृष्टि करता है , तथापि कुछ बीज अंकुरित होकर फलित हो जाते हैं तो कुछ व्यर्थ ही गीले रह जाते है , इसमें मेघ का क्या दोष ?
//किन्तु आपने यह नहीं बताया कि ..///
हमने उतना ही बताया है जितना पचा सको तो वही पोषक हो जाये, किन्तु उतने पर ही अपच हुआ दीखता है आपमें , अतः हमारा निर्णय सही है आपके प्रति ।
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