प्राचीन सनातन हिन्दू राष्ट्र नेपाल में विविध शक्ति - उपासनाऐं -
गीता में देवव्रताः , पितृव्रताः , भूतेज्या : इस प्रकार सृष्टि के कारणभूत त्रिगुणों की विलक्षणता से प्रकट लौकिक उपासनाओं के तीन भेद और उनके फलों की चर्चा भगवान् ने संकेत की है । इसके साथ ही प्राचीन आचार्यों ने यह सिद्धान्त गीता का स्थिर किया है कि देवोपासना अनिवार्य कर्तव्य ही है एवं एक ही देवोपासना सकाम व निष्कामभाव से भोग व मोक्ष की हेतु सिद्ध होजाती है ।
नेपाल के पश्चिमांचल की यदि हम चर्चा करें तो , यह वह भाग है , जहॉ पर वैदिक , मिश्रित व तान्त्रिक : तीनों ही प्रकार की आत्मोपासना विद्यमान् है ।
पश्चिमॉचल भाग में स्वयं भगवान् शिव के असंख्य रुद्रावतारों की श्मशानी शक्तियों, राजंशी देवताओं के कार्यसाधक श्मशानी शक्तियों का पूजन अपने शीर्ष पर है ।
महाभगवती दुर्गा , भगवती महाकालिका की प्रेतवाहिनी, आसुरी रक्त शोषण करने वालीं दिव्य शक्तियॉ विविधरूपों में पूजित हैं ।
इसके अतिरिक्त कुछ स्थल/ परम्पराऐं ऐसी भी हैं जहॉ पर विविध प्रेतयोनि की शक्तियॉ , असुरलोक की विविध शक्तियॉ पूजित होती हैं ।
यही कारण है कि विविध प्रकार की तान्त्रिक पूजाविधियॉ, उन -उन शक्ति के स्वभाव विभेद से अनेक प्रकार की पशुबलियॉ (छाग(बकरा), महिष(भैंसा) , सूकर (सुंवर) , कुक्कुट (मुर्गा) आदि ) बहुत ही सामान्य सी बात है । अनेक स्थलों पर नरबलि की भी परम्परा रही है ।
श्री आद्य शंकराचार्य ने निज भाष्य में स्पष्ट किया है कि अद्वय आत्मभाव की अपेक्षा से प्राणिमात्र असुर ही है । इस दार्शनिक दृष्टि से पश्वादि विविध योनियों के विविध प्राणियों का रक्तपान/ बलिस्वीकरण यदि ईश्वरीय शक्तियॉ करतीं हैं, तो कोई आश्चर्य नहीं । #त्यागाच्छान्तिरनन्तरम् ।।
#ध्यातव्य (नोट ) : कृपया कुछ झोलाछाप ज्ञानी ध्यान दें कि वे समाज सुधार , अहिंसा धर्म का व्यर्थ का #अप्रासंगिक, रटा रटाया अपना चुल्लू भर ज्ञान से प्रकट उपदेश इस वक्तव्य (पोस्ट) पर न दिखायें । सीधे अवरुद्ध (ब्लॉक) कर दिया जायेगा ।।
।। जय श्री राम ।।।
No comments:
Post a Comment