Friday, 2 March 2018

बलि रहस्य

प्राचीन सनातन हिन्दू राष्ट्र नेपाल में  विविध शक्ति -  उपासनाऐं - 

गीता में देवव्रताः , पितृव्रताः , भूतेज्या : इस प्रकार सृष्टि के  कारणभूत  त्रिगुणों की विलक्षणता से  प्रकट    लौकिक उपासनाओं के तीन भेद और उनके फलों की चर्चा भगवान् ने संकेत की है ।  इसके साथ ही प्राचीन  आचार्यों ने यह सिद्धान्त गीता का स्थिर किया है  कि  देवोपासना अनिवार्य  कर्तव्य ही है  एवं  एक ही देवोपासना सकाम व निष्कामभाव से भोग व मोक्ष की हेतु सिद्ध होजाती है ।

नेपाल के  पश्चिमांचल की यदि हम चर्चा करें  तो , यह वह भाग है , जहॉ  पर  वैदिक , मिश्रित व तान्त्रिक : तीनों ही प्रकार की  आत्मोपासना विद्यमान् है ।

पश्चिमॉचल भाग में स्वयं भगवान् शिव के   असंख्य रुद्रावतारों की श्मशानी शक्तियों,    राजंशी देवताओं के  कार्यसाधक  श्मशानी शक्तियों का पूजन अपने शीर्ष पर है ।

महाभगवती दुर्गा , भगवती महाकालिका की   प्रेतवाहिनी,  आसुरी रक्त शोषण करने वालीं  दिव्य शक्तियॉ विविधरूपों में पूजित हैं ।

इसके अतिरिक्त  कुछ   स्थल/  परम्पराऐं  ऐसी भी हैं जहॉ पर   विविध प्रेतयोनि की शक्तियॉ , असुरलोक की विविध  शक्तियॉ पूजित होती हैं ।

यही कारण है कि   विविध प्रकार की  तान्त्रिक  पूजाविधियॉ, उन -उन  शक्ति के स्वभाव विभेद से  अनेक प्रकार की  पशुबलियॉ   (छाग(बकरा),  महिष(भैंसा) , सूकर (सुंवर) , कुक्कुट (मुर्गा) आदि )  बहुत ही सामान्य सी बात है । अनेक स्थलों पर  नरबलि की भी परम्परा रही है ।

श्री आद्य शंकराचार्य  ने निज  भाष्य में स्पष्ट  किया है कि अद्वय आत्मभाव की  अपेक्षा से प्राणिमात्र  असुर ही है । इस दार्शनिक दृष्टि से  पश्वादि विविध योनियों के     विविध  प्राणियों का रक्तपान/ बलिस्वीकरण  यदि ईश्वरीय शक्तियॉ करतीं हैं,  तो कोई आश्चर्य नहीं ।  #त्यागाच्छान्तिरनन्तरम् ।।

#ध्यातव्य (नोट ) :  कृपया   कुछ झोलाछाप ज्ञानी ध्यान दें कि वे समाज सुधार ,  अहिंसा  धर्म  का  व्यर्थ का  #अप्रासंगिक,  रटा रटाया  अपना    चुल्लू भर ज्ञान से प्रकट उपदेश इस वक्तव्य (पोस्ट) पर   न दिखायें ।    सीधे  अवरुद्ध (ब्लॉक) कर दिया जायेगा ।।

।। जय श्री  राम ।।।

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