Friday, 3 November 2017

अन्न नहीं ये रिण है

जब एक ग्रास खाओ अन्न का तो ध्यान में रखना !  ये दाने नहीं , ये ऋण की पोटलियॉ हैं ! जो आप  खाने जा रहे हो !

ऋणी हो धरती के,  ऋणी हो देवताओं के , ऋणी हो हरेक उस प्राणी के जिसके लिये ये दाने बने हैं !

और ऋणी तो सबसे अधिक उस परमात्मा के हो जिसने  तुमको बनाया ,  और तुम्हारे लिये   सब को  बनाया !  

कैसे चुकाओगे ऋण इतना भारी ?

देखो !  परमेश्वर  की दयालुता ,     तुम कहीं ऋणी ना रह जाओ ,  तुम्हारे लिये  वेद का ज्ञान प्रगटाया , और    तुम ऋणों से उऋण हो सको , इसके लिये  तुमको  उसी वेद से  यज्ञ की विद्या  का  बोध कराया ! 

वेदों ने स्वयं को पता है क्या कहा है , वे कहते हैं कि हम  उस  सर्वात्मा सर्वेश्वर   परमात्मा  की सॉसें हैं ,  जो   तुम्हारे  लिये प्रगटे  हैं ! 

आहा ! कितनी करुणा , कितना प्रेम , कितना अपनत्व है परमेश्वर का कि उसनी अपनी श्वांसे ही तुम्हारे नाम कर दीं !   प्रीत की रीत रंगीलो ही जानै !

इसलिये हे अग्रजन्मा ब्राह्मण !

  भोजन करने से पूर्व सदैव पहले   #बलिवैश्वदेव_यज्ञ करो , और यज्ञ से ही इस यज्ञपुरुष परमेश्वर  की आराधना , जिसने तुम्हारे  लिये इतना विराट् अनुष्ठान  सम्पन्न किया है !

#यज्ञ -  यही तुम्हारा प्रथम धर्म है !

।। जय श्री  राम ।।

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