Friday, 24 April 2020

राम जी ने सीता जी की अग्नि परीक्षा क्यों लीं

प्रश्न-
जगज्जननी माँ सीताजी की अग्निपरीक्षा का औचित्य क्या है?
सब कुछ जानते हुए भी श्रीराम ने ऐसा दुर्व्यवहार क्यों किया?

उत्तर-
भगवान् श्रीराम ने खर दूषणादि को मारकर एक दिन एकान्त में श्रीसीताजी को कहा कि अब अविलम्ब रावण भिक्षुक बनकर आपके पास आयेगा।(रावणो भिक्षुरूपेण आगमिष्यति तेन्तिकम्)।
अतः आप एकवर्षपर्यन्त अग्नि में निवास करो।(अग्नौ अदृश्यरूपेण वर्षं तिष्ठ ममाज्ञया)।

तुम्ह पावक महुं करहु निवासा।
जौ लगि करौं निसाचर नासा।।
निज प्रतिबिम्ब राखि तहं सीता।
तैसेइ सील रूप सुविनीता।।
प्रभुपद धरि हिय अनल समानी।
रा.च.मा. अरण्य 23 /2-3-4

और स्वमायारचित अपनी छायाकृति कुटिया में स्थापित करो।(त्वं तु छायां त्वदाकारां स्थापयित्वा उटजे विश)।
रावण वधोपरान्त आप हमको  पुनः प्राप्त करोगी।(रावणस्य वधान्ते मां पूर्ववत् प्राप्स्यसे शुभे)
सीताजी ने माया सीता को बाहर रखकर स्वयं पावक में प्रवेश किया।
मायासीतां बहिस्थाप्य स्वयमन्तर्दधेनले।
अध्यात्म रामायण अरण्यकाण्ड 7/2-3-4

युद्धकाण्ड...12 वां सर्ग
रावणान्त्येष्टि संस्कार संपन्न होने पर भक्तप्रवर विभीषणाभिषेकोपरान्त श्रीराम के मन में पावकस्थ सीताजी को प्राप्त करने तथा मायामय सीताजी को त्यागने का भाव आया।
मायासीतां परित्यक्तुं जानकीमनले स्थिताम्।आदातुं मनसा ध्यात्वा रामः प्राह विभीषणम्।।12/67

सीता प्रथम अनल महुं राखी।
प्रगट कीन्ह चह अन्तरसाखी।।
रा.च.मा.लंका का.108/14

अग्निदेव सीतामाता को अपनी गोद में लेकर प्रकट होते हैं तथा श्रीराम को सौंपते हैं।
विभावसुः ..
स्वांके समादाय विदेहपुत्रिकां..13/19
गृहाण देवीं रघुनाथ जानकीं,
पुरा त्वया मय्यवरोपितां वने।।13/20

अंकेनादाय पावकः.....एषा ते राम वैदेही पापमस्यां न विद्यते।।
बाल्मिकीय यु.का.118/5
प्रतिबिम्ब अरु लौकिक कलंक प्रचंड पावक महुं जरे।
धरिरूप पावक पानि गहि श्री सत्य श्रुति जग विदित जो।
जिमि क्षीरसागर इंदिरा रामहि समर्पी आनि सो।।
रा.च.मा.लं.का.108/छंदांश

दशरथ जी स्वयं सीताजी से कहते हैं- हे पुत्रि सीते तुम राम पर संशय मत करना।राम तुम्हारे हितैषी हैं।तीनों लोकों में तुम्हारी पवित्रता सिद्ध करने हेतु ही यह लीला की है।
रामेणेदं विशुद्ध्यर्थं कृतं वै त्वद्धितैषिणा।।
119/35 बा.यु.का.

सांसारिक स्वभाव में लीन संशयग्रस्त प्राणियों के विश्वासार्थ ही यह अग्निपरीक्षा का अभिनय किया गया।अन्यथा आप ही सोचें शिवशिवा ब्रह्मेन्द्राग्निवायु आदि देवगणों के सम्मुख, राक्षसेश विभीषण,वानरेश सुग्रीव जैसे राजाओं की साक्षिता होने पर भी यह संसारी व्यक्ति सीताचरित्र पर प्रश्नचिह्न लगा जाते हैं। कल्पना करो कि यह परीक्षा न होती तो न जाने कितने लोग क्या क्या न कहते सीता जी के विषय में।
और अंत में यदि श्रीराम का यह व्यवहार निंदायोग्य है,अस्वीकार्य है तो फिर प्रत्येक स्वर्णकार भी निंदित हो जो स्वर्ण को पीडा देकर गलाकर जलाकर नवाकार देता है।
चांद्रायण कृच्छ्र तप्तकृच्छ्र आदि व्रतोपदेष्टा गुरु शास्त्र संत सभी गलत होंगे जो कठोर प्रायश्चित्त का उपदेश करते हैं।
प्रत्येक वह माँ जो रुदनरत शिशु को बलात स्नानादि कराकर सजाती है।

श्रीराम चाहते हैं कि मेरी सीता पर कोई उंगली न उठे।इसीलिए सावधानी वरत रहे हैं।

पूजा आदि में सिर नहीं ढंका चाहिए

शास्त्र प्रमाण:- उष्णीषो कञ्चुकी चात्र मुक्तकेशी गलावृतः ।  प्रलपन् कम्पनश्चैव तत्कृतो निष्फलो जपः ॥ अर्थात् - पगड़ी पहनकर, कुर्ता पहनकर, नग...